प्रधानमंत्री की चिंता. देश में क्या चल रहा है
प्रधानमंत्री की चिंता.
देश में क्या चल रहा है
प्रधानमंत्री हो तो नरेन्द्र मोदी की तरह । देश की चिंता उन्हें इतनी
है कि अमेरिका और मिस्र से लौटते ही भारत की धरती पर कदम रखते ही उन्होंने अपने पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा से सीधा सवाल किया कि देश मेँ क्या चल रहा है।
ऐसी चिंता कितने प्रधानमंत्री की होती है हालांकि पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इसका माकूल जवाब देते हुए कहा कि पार्टी के नेता उनकी ( प्रधानमंत्री मोदी) सरकार के नौ साल के रिपोर्ट कार्ड के साथ लोगों तक पहुंच बना रहे हैं और देश खुश है।
लेकिन लोगों का क्या? वे इस साधारण से सवाल को बात का बतगड़ बनाने में लगे है अखिर देश के प्रधानमंत्री ने ऐसा या गलत कह दिया ! क्या उन्हें जानने का अधिकार नहीं है कि देश में क्या चल रहा है। क्या उन्हें जानने का अधिकार नहीं है कि देश में क्या चल रहा है।
देश में क्या कुछ नहीं चल रहा है।लेकिन नड्डा ने वही बताया जो प्रधानमंत्री मोदी सुनना चाहते थे ?हकीकत तो यह है दि देश में मानसून का सीजन चल रहा है, गर्मी से राहत ढूंढते लोग बारिश से बचते फिर रहे हैं लगातार बारिश ने जहां शहरी जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है तो किसानों के चेहरे पर खुशिया दमक रही है. इस उम्मीद के साथ वे खेतों में चले गए हैं कि चार माह बाद जब उनकी उपज आएगी तो वे सुख से जीवन जी पायेंगे।
चाहे सरकार महंगाई को नियंत्रित करे या न करे। बेरोजगारी का मुंह ताकते ग्रामीण युवा चार माह व्यस्त हो जायेंगे। झूठ और अफवाह की राजनीति का असर अब उनके कामो पर तभी पड़ेगा जब खाद-पानी की जरूरत पड़ेगी।
लेकिन सवाल ये नहीं होना था कि देश में क्या चल रहा है, क्योंकि देश के प्रधानमंत्री के पास इसकी पूरी जानकारी होती है, उन्हें न तो जरूरत है किसी मंत्री से पूछने की न पार्टी के अध्यक्ष सें ही पूछने की जरूरत है।
लेकिन जब सवाल देश के प्रधानमंत्री ने पूछा है तो उड़के मायने तलाशने चाहिए कि आखिर प्रधानमंत्री को इस तरह के सवाल करने की जरूरत क्यों पड़ी ।कुछ लोगों का कहना है कि वे यात्रा की थकान में थे और शायद अपने लोगों सामने देख अनायास उनके मुंह से यह सवाल निकल गया लेकिन सवाल तो सवाल है वह भी उस प्रधानमंत्री के मुँह से निकला हो जो अब तक सबसे महान प्रधानमंत्री के रूप प्रचारित प्रसारित है तो फिर उसका जवाब भी वही होना था जो जेपी नड्डा ने दिया।
वैसे भी यह दौर कैसा है किसी से नहीं छिपा है, धर्म और राष्ट्रवाद को चरम पर ले जाने वाली सत्ता के लिए दूसरो का सवाल देशद्रोह और धर्मद्रोह की श्रेणी में परिभाषित है। तब सवाल कौन करे और लोकतंत्र मेँ सवाल तो होने ही चाहिए । आखिर अमेरिका में लोकतंत्र की परिभाषा बताकर आये हैं इसलिए जब सवाल करना भी जरूरी है तो फिर सवाल भी सत्ता करेगी । इसलिए लोकतंत्र की अमेरिका में दिए परिभाषा पर सच्चाई का मुहर लगाना भी जरूरी है। मुहर तभी लगेगी जब सवाल होंगे।इसलिए अब सवाल भी हम ही करेंगे।
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